चिकनकारी शब्द चाकिन (chakin या chakeen) शब्द से बना है, जो एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है कपड़े पर सुन्दर कशीदाकारी, खुबसूरत पैटर्न या बेल-बूटे बनाना।
यह एक पारंपरिक कला है, जो कई सालों से चली आ रही है। चिकनकारी किये हुए कपड़ों को लोग खास मौकों पर पहनना पसंद करते हैं, जैसे शादी-ब्याह या त्योहारों पर। यह कढ़ाई इतनी नाजुक होती है कि जब आप इसे देखते हैं, तो आपको लगता है जैसे कपड़े पर जादू हुआ है!
उत्तर प्रदेश राज्य, विशेष रूप से लखनऊ शहर को चिकनकारी कढ़ाई का केंद्र माना जाता है। लखनऊ की इस खूबसूरत कला ने न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन किया है।
पहले यह महीन कपड़े पर जैसे मलमल कपड़े पर सफेद धागे के साथ किया जाता था। हालांकि अब यह विभिन्न प्रकार के कपड़े जैसे कॉटन, जॉर्जेट, लिनेन, शिफॉन नायलॉन और सिंथेटिक कपड़े पर भी किया जाता है।
आजकल चिकनकारी सिर्फ कुर्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि साड़ियों, दुपट्टों, शर्ट्स और यहां तक कि वेस्टर्न कपड़ों में भी इसका इस्तेमाल होता है। पहनने योग्य वस्त्रों के अलावा यह कुशन कवर, बेडशीट, तकिया कवर, पर्दे, टेबल कपड़ा जैसी कई अन्य चीजों पर भी किया जाता है।
चिकनकारी की इस पोस्ट में आगे हम देखेंगे की:
चिकनकारी क्या है,
इसके विभिन्न प्रकार क्या हैं,
इसमें किन-किन टाँकों का इस्तेमाल होता है, और
यह किन कपड़ों पर की जाती है।
चिकनकारी क्या है?
चिकनकारी कढ़ाई एक बहुत ही खूबसूरत और खास कढ़ाई की कला है, जो मुख्य रूप से भारत के लखनऊ शहर से जुड़ी हुई है।
यह कढ़ाई बहुत महीन होती है और इसे सूती कपड़े पर किया जाता है। इसमें सफेद धागे से कपड़े पर नाजुक और सुंदर डिजाइन बनाए जाते हैं।
आमतौर पर, हल्के रंगों के कपड़े जैसे सफेद, पेस्टल रंगों पर चिकनकारी की जाती है। इसमें फूल, पत्तियाँ और जालियों जैसे डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जो देखने में बेहद खूबसूरत लगते हैं।
यह कढ़ाई इतनी बारीक होती है कि दूर से देखने पर कपड़ा जैसे चमक रहा हो।
साथ ही साथ ये कपड़े ठंडे और हल्के होते हैं, इसलिए गर्मियों में ये काफी आरामदायक होते है।
इसकी उत्पत्ति: पुरानी और प्रसिद्ध कला
चिकनकारी बहुत पुरानी कला है, जिसे मुगल काल से किया जा रहा है। यह लगभग 400 साल पहले शुरू हुई थी।
कहा जाता है कि मुगल शासक नूरजहाँ ने इस कला को लोकप्रिय बनाया था।
वह इस कला से इतनी प्रभावित थीं कि उन्होंने इसे अपने दरबार में जगह दी।
लखनऊ को चिकनकारी का घर माना जाता है।
और फिर लखनऊ से यह कला पूरे भारत और दुनिया में फैली।
अब इसे दूसरे शहरों में भी किया जाने लगा है, लेकिन लखनऊ की चिकनकारी बहुत मशहूर है।
चिकनकारी की विशेषताएँ
- नाजुक कढ़ाई
- सफेद धागे का इस्तेमाल
- विभिन्न प्रकार के टाँके
- फूल-पत्तियों के डिजाइन
चिकनकारी के फायदे | चिकनकारी की चुनौतियाँ |
---|---|
सुंदर दिखता है | समय लेने वाला काम |
कपड़े को विशेष बनाता है | कुशल कारीगरों की जरूरत |
भारतीय संस्कृति का प्रतीक | महंगा हो सकता है |
अब आगे देखते है की चिकनकारी के कितने प्रकार होते हैं।
चिकनकारी के प्रकार
चिकनकारी कई तरह की होती है। आइए, हम इसके तीन मुख्य प्रकारों के बारे में जानें:
A. फ्लैट चिकनकारी
फ्लैट चिकनकारी सबसे आम प्रकार की चिकनकारी है। इसमें:
- कपड़े पर सीधे कढ़ाई की जाती है
- डिज़ाइन समतल होता है
- कपड़े के पीछे से देखने पर भी पैटर्न दिखाई देता है
B. रेज़्ड चिकनकारी
रेज़्ड चिकनकारी में:
- डिज़ाइन उभरा हुआ होता है
- इसमें अधिक धागे का उपयोग किया जाता है
- यह देखने में बहुत सुंदर लगती है
C. जाली चिकनकारी
जाली चिकनकारी एक विशेष प्रकार की कढ़ाई है:
- इसमें कपड़े में छोटे छेद बनाए जाते हैं
- छेदों को धागे से भरा जाता है
- यह एक जालीदार प्रभाव देता है
चिकनकारी के प्रकारों की तुलना:
प्रकार | विशेषता | उपयोग |
---|---|---|
फ्लैट | समतल डिज़ाइन | कुर्ते, सलवार |
रेज़्ड | उभरा हुआ डिज़ाइन | दुपट्टे, साड़ियाँ |
जाली | जालीदार प्रभाव | स्कार्फ, स्टोल |
अब आगे समझते है की इस सुंदर कला में किन-किन टाँकों का इस्तेमाल होता है।
चिकनकारी में इस्तेमाल होने वाले टाँके
चिकनकारी में कई तरह के खूबसूरत टाँके इस्तेमाल किए जाते हैं। आइए, हम इनमें से कुछ मुख्य टाँकों के बारे में जानें:
A. बखिया
बखिया एक बहुत ही आम टाँका है जो चिकनकारी में खूब इस्तेमाल होता है। यह ऐसा लगता है जैसे कपड़े पर छोटी-छोटी लाइनें बनी हों। बखिया से फूल-पत्तियों की बाहरी रेखाएँ बनाई जाती हैं।
B. फंदा
फंदा टाँका छोटे-छोटे गोल घेरों जैसा दिखता है। इससे फूलों के बीच के हिस्से या छोटी-छोटी बूटियाँ बनाई जाती हैं। यह टाँका कपड़े को बहुत सुंदर बना देता है।
C. मुरी
मुरी टाँका थोड़ा मोटा होता है और इससे फूल-पत्तियों को भरा जाता है। यह ऐसा लगता है जैसे कपड़े पर उभार आ गया हो। मुरी से बने डिज़ाइन बहुत आकर्षक लगते हैं।
D. जाली
जाली टाँका चिकनकारी का एक खास टाँका है। इससे कपड़े में छोटे-छोटे छेद बनाए जाते हैं जो एक जाली जैसे दिखते हैं। यह टाँका कपड़े को हवादार और सुंदर बनाता है।
चिकनकारी में इस्तेमाल होने वाले कुछ प्रमुख टाँकों की तुलना:
टाँका | दिखावट | उपयोग |
---|---|---|
बखिया | छोटी लाइनें | बाहरी रेखाएँ बनाने के लिए |
फंदा | छोटे गोल घेरे | फूलों के बीच या छोटी बूटियाँ बनाने के लिए |
मुरी | मोटा और उभरा हुआ | फूल-पत्तियों को भरने के लिए |
जाली | छोटे छेदों का जाल | कपड़े को हवादार बनाने के लिए |
इन टाँकों के अलावा भी कई और टाँके होते हैं जो चिकनकारी को और भी खूबसूरत बनाते हैं। हर टाँके का अपना एक खास अंदाज़ होता है जो कपड़े को अलग-अलग तरह से सजाता है।
अब जब हमने चिकनकारी क्या है, उसकी खासियत , चिकनकारी के प्रकार और टाँकों के बारे में जान लिया है, तो आइए देखें कि इस खूबसूरत कला के लिए किन कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।
चिकनकारी कढ़ाई के लिए कौन से कपड़े सबसे अच्छे होते हैं?
चिकनकारी के लिए मुख्य रूप से तीन तरह के कपड़े इस्तेमाल किए जाते हैं:
A. मलमल
मलमल एक बहुत ही नरम और हल्का कपड़ा होता है। यह चिकनकारी के लिए सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला कपड़ा है। क्योंकि:
- यह बहुत नाजुक होता है, इसलिए इस पर कढ़ाई करना आसान होता है।
- गर्मी में यह बहुत आरामदायक होता है।
- इस पर की गई कढ़ाई बहुत सुंदर दिखती है।
B. चिकन
चिकन एक तरह का सूती कपड़ा होता है जो चिकनकारी के लिए खास तौर पर बनाया जाता है। इसकी खासियत है:
- यह थोड़ा मोटा होता है, इसलिए ज्यादा टिकाऊ होता है।
- इस पर कढ़ाई करना आसान होता है।
- यह कपड़ा लंबे समय तक चलता है।
C. खादी
खादी हाथ से बुना हुआ कपड़ा होता है। चिकनकारी के लिए इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है:
- यह देसी और पर्यावरण के अनुकूल होता है।
- इस पर की गई कढ़ाई एक अलग ही रूप में दिखती है।
- यह गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रहता है।
कपड़ा | विशेषताएँ | उपयोग |
---|---|---|
मलमल | नरम, हल्का, नाजुक | कुर्ते, दुपट्टे |
चिकन | मजबूत, टिकाऊ | साड़ी, कुर्ते |
खादी | देसी, टिकाऊ | कुर्ते, शर्ट |
अगले भाग में हम चिकनकारी के महत्व के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि यह कला हमारी संस्कृति में क्यों इतनी खास है।
फैशन में इसका उपयोग
आजकल चिकनकारी फैशन की दुनिया में छाई हुई है। बड़े-बड़े डिजाइनर चिकनकारी का इस्तेमाल अपने कपड़ों में करते हैं।
- कुर्ते, साड़ी, और लहंगे में इसका खूब इस्तेमाल होता है
- पश्चिमी पोशाक जैसे टॉप और ड्रेस में भी चिकनकारी देखने को मिलती है
- यह पारंपरिक और आधुनिक फैशन को जोड़ने का एक अच्छा तरीका है