Zardozi Embroidery
ज़रदोज़ी कढ़ाई एम्ब्रायडरी का एक प्राचीन लेकिन बेहद सुंदर और लुभावना रूप है।
यह एक खास प्रकार की कढ़ाई होती है, जिसमें कपड़े पर खूबसूरत और चमकदार डिजाइन बनाने के लिए धातु के धागे, मोतियों और कभी-कभी कीमती पत्थरों का भी उपयोग किया जाता है।
ज़र्दोज़ी कढ़ाई का इस्तेमाल अक्सर साड़ी, लहंगे और अन्य पारंपरिक कपड़ों पर किया जाता है।
जब आप किसी शादी या त्योहार में जाते हैं और देखते हैं कि लोगों के कपड़े कितने खूबसूरत होते हैं, तो अक्सर उसमें ज़र्दोज़ी कढ़ाई का काम होता है।
यह कढ़ाई सिर्फ कपड़ों को ही नहीं, बल्कि बैग्स, जूतों और रुमालों पर भी की जाती है।
ज़रदोज़ी एम्ब्रायडरी अर्थात ज़ार और दोज़ी
इस कढ़ाई के पीछे एक लंबा इतिहास है। यह भारत में मुग़ल साम्राज्य के समय से चली आ रही है, जब राजाओं और रानियों के कपड़ों को और भी भव्य बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था।
ज़रदोज़ी शब्द फारसी भाषा के ज़ार और दोज़ी शब्द से बना है, ज़ार अर्थात सोना और दोज़ी का मतलब होता है कढ़ाई।
इसलिए इसका नाम ही इसकी शाही उत्पत्ति का संकेत देता है, यानी की सोने से कढ़ाई या सिलाई।
ज़रदोज़ी कढ़ाई मूल रूप से सोने या चांदी के ज़री के धागे से की जाती थी, इसलिए इसे धातु कढ़ाई के नाम में भी जाना जाता है। हालांकि आजकल यह रंगीन धातु के धागे के साथ भी की जाती है।
ज़रदोज़ी कढ़ाई करने वाले कारीगर इसे बहुत ध्यान से और प्यार से बनाते हैं।
इस कढ़ाई को करना आसान नहीं है, क्योंकि इसमें बहुत धैर्य और मेहनत लगती है।
लेकिन जब काम पूरा होता है, तो जो नज़ारा होता है, वह वाकई अद्भुत होता है।
ज़रदोसी कढ़ाई न केवल कपड़ों को खूबसूरत बनाती है, बल्कि यह एक कला है जो पीढ़ियों से चली आ रही है।
इसलिए, अगली बार जब आप ज़र्दोज़ी कढ़ाई देखेंगे, तो उसे और भी ध्यान से देखना और समझना, और याद रखना कि यह सिर्फ एक डिज़ाइन नहीं, बल्कि एक अनमोल परंपरा है!
ज़रदोज़ी एम्ब्रायडरी क्यों ख़ास है?
धातु के धागे
परंपरागत रूप से, असली सोने और चांदी के धागों का उपयोग किया जाता था, जिससे कढ़ाई में शानदार चमक और वजन जुड़ जाता था।
आजकल, सोने और चांदी से मढ़े तांबे के धागे अधिक आम हैं, लेकिन उनका प्रभाव भी काफी अच्छा रहता है।
जटिल डिज़ाइन
ज़रदोज़ी कलाकार धातु के उन धागों से फूलो की डिज़ाइन से लेकर कई प्रकार के पैटर्न तक ऐसे जटिल डिज़ाइन बनाते हैं, जो कपड़े से ऊपर उठते हुए प्रतीत होते है, और कपडे को अत्यंत आकर्षित बना देते है।
एम्ब्रायडरी का स्तर इतना अद्भुत होता है की, प्रत्येक सिलाई, पैटर्न की गहराई और आयाम को सामने लाने के लिए सावधानी के साथ की जाती है।
अलंकरण
ज़रदोज़ी कढ़ाई में धातु के धागों के साथ साथ यानी की सोने या चांदी के धागों के साथ साथ मोती, मणि, सेक्विन और अन्य कीमती पत्थरों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे बनावट और चमक बढ़ जाती है। यह वास्तव में भव्य और ध्यान आकर्षित करने वाला प्रभाव पैदा करता है।
ज़रदोज़ी के लिए कपड़ा
ज़रदोज़ी कढ़ाई रेशम, साटन या मखमल जैसे कपड़ों पर की जाती है, क्योंकि उनकी चिकनी सतहें धातु के धागों को खूबसूरती से प्रदर्शित करती हैं।
शानदार और राजसी कला
ज़रदोज़ी कढ़ाई को एक बहुत ही शानदार और राजसी कला का रूप माना जाता है, क्योंकि इसका उपयोग राजा और नवाबों के कपड़ों और सामानों को सजाने के लिए किया जाता था।
ऐतिहासिक रूप से, ज़रदोज़ी का उपयोग भारत, ईरान और मध्य एशिया में रॉयल्टी और कुलीन लोगों की पोशाक को सजाने के लिए किया जाता था। भारत में ज़रदोज़ी कढ़ाई काम मुगल काल में लोकप्रिय हुआ और शाही परिवारों और रईसों के बीच यह काफी लोकप्रिय था।
यह राजसी वेशभूषा, दीवार पर लटकी सजावट और यहां तक कि हाथियों और घोड़ों के साज-सामान की भी शोभा बढ़ाता था।
पहले जरदोजी मुख्य रूप से शाही परिवारों के लिए पहनने योग्य कपड़ों और चादरों पर की जाती थी। लेकिन अब यह आम लोगों में भी काफी लोकप्रिय हो गया है। जरदोजी वाले कपड़े किसी भी शादी या महत्वपूर्ण समारोह का एक अभिन्न हिस्सा होते हैं क्योंकि यह राजसी ठाठ-बाट को दर्शाते हैं।
आज, ज़रदोज़ी कढ़ाई शादी के कपड़े, साड़ी, शेरवानी और अन्य पारंपरिक भारतीय परिधानों पर देखी जा सकती है। पहनने योग्य कपड़ों के अलावा, जरदोजी कुशन कवर, टेबल क्लॉथ, वॉल हैंगिंग, फैब्रिक पर्स आदि पर भी की जाती है।
ज़रदोज़ी का वर्तमान उपयोग
जरदोजी को आज भी अत्यधिक महत्व दिया जाता है, जो पारंपरिक भारतीय परिधान, किसी फंक्शन के लिए शाम के पहनावे, घर की सजावट आदि में सुंदरता और भव्यता का स्पर्श जोड़ता है, जैसे की:
पारंपरिक भारतीय परिधान: दुल्हन के लहंगे, साड़ी और शेरवानी में अक्सर उत्कृष्ट जरदोजी का काम होता है।
शाम के परिधान: जरदोज़ी से सजी पोशाकें और गाउन किसी भी औपचारिक कार्यक्रम, या फंक्शन के लिए बिल्कुल उपयुक्त हैं।
घर की साज-सज्जा: विलासिता के स्पर्श के लिए कुशन कवर, वॉल हैंगिंग और मेज़पोश को जरदोजी से सजाया जा सकता है।
जरदोज़ी कढ़ाई कैसे की जाती है?
ज़रदोज़ी काम ज़री कढ़ाई का ही एक विस्तार है, जिसे क्रोशेट (crochet) हुक के साथ किया जाता है। ज़रदोज़ी कढ़ाई चेन स्टिच के जैसी दिखती हैं। ज़रदोज़ी कसीदा काफी जटिल है और इसके लिए काफी धैर्य की आवश्यकता होती हैं।
ज़रदोज़ी कढ़ाई के लिए कौन सा कपड़ा इस्तेमाल करें?
चूंकि मोती और कीमती पत्थरों आदि से ढके हुए धातु के तारों के साथ ज़रदोज़ी काम किया जाता है, इसलिए इसका कसीदा वजन में भारी होता है। इसलिए ज़रदोज़ी कसीदा रेशम, क्रेप, मखमल इत्यादि जैसे मोटे और भारी कपड़े पर किया जाता है। इस प्रकार कपड़े की पसंद भी शाही और महंगी होती है।
ज़रदोज़ी बनाने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है:
पहले, एक रेशमी कपड़े को एक फ्रेम में तना जाता है, जिसे अड्डा कहा जाता है।
फिर, एक डिजाइन को कपड़े पर ट्रांसफर किया जाता है, जिसे खाका कहा जाता है। यानी की कपड़े पर डिजाइन को trace किया जाता है।
उसके बाद, एक सूई और धागे का इस्तेमाल करके, डिजाइन को कपड़े पर बुना जाता है। धागे के रूप में, सोने या चांदी के तार, जिसे जरी कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है।
इसके अलावा, मोती, मणि, गोते, सलमा, सीतारा और अन्य सजावटी सामग्री का भी उपयोग किया जाता है।
जर्दोजी को बनाने में कई तरह के तंत्र और तकनीक का उपयोग किया जाता है, जैसे बदला, चमकी, गिलाफ, तारकाशी, गोज़ाई, आदि।
जर्दोजी को बनाने में काफी समय और मेहनत लगती है, लेकिन इसका परिणाम बहुत ही शानदार और राजसी होता है।
Summary
हालांकि पहले ज़रदोज़ी कढ़ाई राजसी कला का रूप माना जाता था, लेकिन आज भी ज़रदोज़ी कढ़ाई का प्रचलन है, और इसे भारत के कुछ हिस्सों में, जैसे लखनऊ, हैदराबाद, चेन्नई और भोपाल में किया जाता है।
ज़रदोज़ी कढ़ाई से साड़ी, लहंगा, कुर्ता, शेरवानी और अन्य पारंपरिक पोशाकों को सजाया जाता है। इसके अलावा, जूते, बैग, तकिया, और दीवार के लटकने जैसे सामानों पर भी ज़रदोज़ी कढ़ाई का प्रयोग किया जाता है।
ज़रदोज़ी कढ़ाई भारत की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत का एक सुंदर उदाहरण है।